चारों तरफ नितांत अकेलापन, अपनों के बीच भी उलझता मन! चारों तरफ नितांत अकेलापन, अपनों के बीच भी उलझता मन!
एक प्रश्नचिन्ह सा लगा है सम्मुख समझो जितना और उलझता एक प्रश्नचिन्ह सा लगा है सम्मुख समझो जितना और उलझता
हर रिश्ते की कमी यहाँ पे पूरी हो सके। पूरी कभी न हो सकी जो माँ की है कमी। हर रिश्ते की कमी यहाँ पे पूरी हो सके। पूरी कभी न हो सकी जो माँ की है कमी।
जैसे कोई वर्षों पुराना बोझ उतार दिया हो उसने अपने सर से जैसे कोई वर्षों पुराना बोझ उतार दिया हो उसने अपने सर से
उसका गीत गाके महफिल सजा लेती हूं ये कविता लिख कर पा लिया करती हूँ उसे उसका गीत गाके महफिल सजा लेती हूं ये कविता लिख कर पा लिया करती हूँ उसे
मैं जीना सीख गई हूं मैं अपनी कहानी से सन्तुष्ट हूं । मैं जीना सीख गई हूं मैं अपनी कहानी से सन्तुष्ट हूं ।